शिल्पी ब्राह्मणों की उपेक्षा, परिणाम भारतवर्ष की वर्तमान दशा
वैदिक काल में विश्वकर्मा *शिल्पी ब्राह्मणों* को बहुत सम्मान प्राप्त था। सभी शिल्प कार्य शिल्पी ब्राह्मण (विश्वकर्मा वंशी) ही करते थे। इसी कारण विज्ञान चर्मोत्कर्ष पर था। ऐसे ऐसे रथों का निर्माण होता था जो वायु गति से थल, नभ, जल तीनों जगह चलने में समर्थ थे। उच्च कोटि के यानों का निर्माण होता था। अस्त्र-शस्त्र की क्वालिटी इतनी उच्च होती थी कि वह अपना लक्ष्य भेदन पलक झपकते ही करदेते। धनुष के लिये ऐसे तीरों का निर्माण होता था कि तीर अपना लक्ष्य भेद कर वापस तरकश में आ जाता था। शिल्पी ब्राह्मणों को राजा अपनी दाहिनी ओर सम्मान पूर्वक स्थान देता था। शिल्पी ब्राह्मणों की उपेक्षा करने पर कठोर दंड का भी प्रावधान था। किंतु आज कलियुग में स्थिति उलटी हो गयी है, आज शिल्पियों का सम्मान करना तो दूर घोर उपेक्षा की जाने लगी।
आजादी के बाद भारतवर्ष में आरक्षण नीति लागू होगयी जिससे स्थिति और विकट होगयी। जो शिल्प वैज्ञानिक कार्य केवल शिल्पी ब्राह्मण ही करते रहे वह कार्य सभी लोग करने लगे। आरक्षण नीति द्वारा देश में महत्वपूर्ण स्थानों पर लोगो को रखा जाने लगा। परिणाम आज सबके सामने है। जिन क्षेत्रों में आज देश को आत्मनिर्भर होना था, जिनका हमें निर्यात करना था, वह हमें दूसरे देशों पर निर्भर होना पड़ गया। जैसे रूस। का एयर डिफेन्स सिस्टम एस-400, जो एक साथ 36 लक्ष्य भेदने में समर्थ है हमे रूस से लेना पड़ा। जबकि अगर शिल्पी ब्राह्मणों की उपेक्षा भारतवर्ष में न हुई होती तो ऐसे न जाने कितने डिफेन्स सिस्टम देश मे निर्मित होगये होते। प्राचीन वैदिक काल में जो ऋषि महृषि आदि थे, वह सब उच्च कोटि के वैज्ञानिक (शिल्पी ब्राह्मण) ही थे वह रिसर्च करते रहते थे। इसी कारण उस काल में विज्ञान उच्चतम स्तर पर था। शिल्पी ब्राह्मणों की इससे ज्यादा उपेक्षा और क्या होगी कि शिल्पी ब्राह्मण श्री हनुमानजी, जो उच्च कोटि के अंतरिक्ष वैज्ञानिक रहे। आज उनको कुछ धूर्तो के कारण लोग बन्दर समझ कर उनकी पूजा करने लगे है। यह मात्र व्याकरण की अशुद्धि है और अर्थ का अनर्थ। जैसे
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाय बोराय जब वा पाय बोराय।।
इसमें दो बार आये कनक शब्द का अर्थ दोनों बार अलग-अलग है। इसी प्रकार वानर शब्द का अर्थ केवल बन्दर ही हो ऐसा नही हो सकता । वानर शब्द का अर्थ- वनों में विचरण करने वाला भी होता है। श्री हनुमान जी वनों में विचरण करने वाले हनुमान जी ही है। क्योंकि न तो मनुष्य के बन्दर उतपन्न हो सकता है, न ही बन्दर से मनुष्य।
कहने का अर्थ यही है जब श्री हनुमान जी जैसे अनुपम महा अंतरिक्ष वैज्ञानिक को ही नही बक्शा गया तो आज के शिल्पियों को लोग कैसे सम्मान देगे। रावण जैसे विद्वान( जिसमे केवल अभिमान ही अवगुण था) का हम प्रत्येक वर्ष पुतला फूंकते है। महान वैज्ञानिक भगवान शिव को हनन नशेड़ी मान कर भांग धतूरे से पूजन लगे। आज के समय सबसे ज्यादा अपमान शिल्पी ब्राह्मणों का ही हुआ है और हो रहा है।आज भारत देश में विश्वकर्मा वंशी शिल्पी ब्राह्मणों (जो जन्मजात ही इंजीनियर हैं) पर देश की सरकारों ने ध्यान दिया होता तो आज देश की स्थिति बहुत कुछ अलग होती। आज हम भी शस्त्रों का निर्यात कर रहे होते। अनेक महत्वपूर्ण स्थानों पर देश अग्रर्णिम पंक्ति में खड़ा होता। क्योंकि आरक्षण की स्थिति ऐसी है जैसे किसी गधे को खूंटे में बांधकर पढ़ाया जाता है। वह फिर भी घोड़ा नही बन सकता। हां उतनी ऊर्जा अगर घोड़े पर खर्च की जाएगी तो वह चेतक घोड़ा अवश्य बन जायेगा।
-केदारनाथ धीमान हरिद्वार
Nice
जवाब देंहटाएंThanks
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